बेरोजगारी क्या है ? what is unemployment
सामान्यतः, जब कोई व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह के लिए किसी काम में नहीं लगा हो तो उसे बेरोजगार कहते हैं। लेकिन, यदि एक आलसी व्यक्ति अपनी इच्छा से कोई कार्य नहीं करता हो तो उसे बेरोजगार नहीं कहा जाएगा। जब काम चाहने वाले व्यक्तियों को इच्छा एवं योग्यता रहने पर भी मजदूरी की प्रचलित दरों पर काम नहीं मिलता है तो उसे बेरोजगारी की स्थिति कहते हैं। इस प्रकार,बेरोजगार व्यक्ति हैं जो अपनी इच्छा के विरुद्ध बेकार है। वे काम कर सकते हैं तथा करना भी चाहते हैं, किंतु उनके लिए रोजगार के लाभप्रद अवसर उपलब्ध नहीं है। परंतु कमा यहां पर ध्यान रखना आवश्यक है कि एक निश्चित आयु वर्ग की कार्यशील जनसंख्या को ही बेरोजगारों की श्रेणी में रखा जाता है। हमारे देश में प्रायः 15 से 59 वर्ष के आयु वर्ग को ही जनसंख्या का कार्यशील जनसंख्या में शामिल किया जाता है। इस प्रकार को मां यदि परिवार के छोटे बच्चे या बूढ़े जीव को पाचन के लिए कोई कार्य नहीं करते तो उन्हें हम बेरोजगार नहीं कर सकते हैं।
भारत में बेरोजगारी के प्रकार
types of unemployment in India
आज विश्व के अधिकांश देशों में पूर्ण अथवा आंशिक बेरोजगारी वर्तमान है कमा लेकिन पिछले एवं अर्ध विकसित अथवा विकासशील देशों में यह अधिक उग्र है। भारत में भी ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है परंतु, ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी का रूप या प्रकृति शहरी क्षेत्रों से सर्वथा भिन्न है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी के दो मुख्य प्रकार हैं मौसमी बेरोजगारी तथा अदृश्य बेरोजगारी। लेकिन शहरी क्षेत्रों में मुख्यतः शिक्षित बेरोजगारी पाई जाती है।
ग्रामीण बेरोजगारी
rural unemployment
जब लोगों को वर्ष के कुछ विशेष महीनों मैं काम नहीं मिलता है तब इसे शाम एक या मौसमी बेरोजगारी कहते हैं। हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या अपने जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर आश्रित है। परंतु, भारतीय कृषि अविकसित और पिछड़ी हुई अवस्था में है। वर्ष में लगभग चार-पांच महीने तक कृषि में संगलन ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा भाग बेकार रहता है। जब तक कृषि कार्य होते हैं तब तक इन लोगों को काम मिलता है लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही यह लोग बेरोजगार हो जाते हैं।
कृषि के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी भी पाई जाती है। इसके अंतर्गत कृषक अपने आप को कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है। अतः यदि उसे कृषि कार्य से हटा दिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं होगी। उदाहरण के लिए कमा भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर खेती करने के लिए तीन व्यक्ति पर्याप्त हैं कमा लेकिन उस पर पांच व्यक्ति लगे हुए हैं। इस स्थिति में दो व्यक्ति अदृश्य रूप से बेरोजगार है। इनका फसल के उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता है।
शहरी बेरोजगारी
urban unemployment
साड़ी बेरोजगारी के भी दो मुख्य प्रकार हैं औद्योगिक बेरोजगारी तथा शिक्षित बेरोजगारी। औद्योगिक बेरोजगारी देश के औद्योगिक क्षेत्रों में पाई जाती है। औद्योगिक विकास की मंद गति इस प्रकार की बेरोजगारी का प्रमुख कारण है।
जब समाज के शिक्षित वर्ग के लोगों को उनकी शिक्षा एवं योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता तो इसे शिक्षित बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी मुख्यतः शहरों में पाई जाती है तथा प्रायः युवा वर्ग के व्यक्ति इसके शिकार होते हैं। विगत वर्षों के अंतर्गत भारत में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। परंतु कमा इन के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है। देश में ऐसे युवकों की संख्या निरंतर बढ़ रही है जिन्हें मैट्रिक स्नातक तथा स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी रोजगार नहीं मिल पाता है। एक अध्ययन के अनुसार कोमा मैट्रिक की अपेक्षा स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त युवकों में बेरोजगारों की संख्या अधिक तेजी से बढ़ी है। वस्तुतः, अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में श्रम की मांग एवं पूर्ति का सही लेखा-जोखा नहीं होने के कारण कई बार विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जहां कुछ विशेष प्रकार की तकनीकी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति बेरोजगार हैं वहीं कई क्षेत्रों में तकनीकी कौशल का अभाव है।
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